प्रस्तुत है खुदा पे लिखी हुई कुछ उम्दा रचनाएँ, जिन्हें मैं पसंद करता हूँ : प्रस्तुत है भाग -२
(११). ना था तो खुद था , ना होता तो खुदा होता ,
डुबोया मुझको कुछ होने ने , मैं ना होता तो क्या होता।
मिर्जा ग़ालिब
(१२). जब की तुझ बिन कोई नहीं वजूद ,
फिर ये हंगामा , ऐ खुदा क्या है।
मिर्जा ग़ालिब
(१३). दाग को कौन देने वाला था ,
जो दिया , ऐ खुदा दिया तूने।
दाग
(१४). वो है सब जगह , जो करूँ नज़र , वो कहीं नहीं , जो हो बे बसर ,
मुझे आज तक ना हुई खबर , वो कहाँ है और कहाँ नहीं।
चकबस्त
(१५). कौन सी शै है की जिसमे नहीं जलवा तेरा ,
हम को तू ही नज़र आता है , हम जिधर देखते हैं।
हैरत इलाहाबादी
(१६). रकीब ने रपट लिखवाई है जा जा के थाने में ,
के अकबर नाम लेता है खुद का इस ज़माने में।
अकबर इलाहाबादी
(१७). अच्छा यहीं नहीं होता , तो कस्ती डुबो के देख ,
एक तू ही ना-खुदा नहीं जालिम , खुदा भी है।
कातिल शिफई
(१८). गवाही कैसे टूटी मामला खुदा का था ,
मेरा और उसका राब्ता तो हाथ और दुआ का था।
परवीन शकीर
(१९). बड़ा शुकुन है , दिन अब गुजरते हैं।,
हम अब किसी से नहीं , बस खुदा से डरते हैं।
कृष्ण बिहारी नूर
(२०). बुतों से तुझे उम्मीद , खुदा से ना-उम्मीदी ,
मुझे बता तो सही , और काफिरी क्या है।
अल्मा इक़बाल
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