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Monday, 12 September 2016

अपंग पिता के लिए-बेनाम कोहड़ा बाज़ारी

भगवन
कितनी खूबसूरत है तेरी दुनिया।

ये झरने का कल कल संगीत
ये चिड़ियों का चहचहाना,

ये फूलों की सुगंध,
ये क्षितिज के पार
बादलों की ओट से
सूरज का आ जाना।

फूल फूल पे नृत्य करते भौरें,
और आनंदमय मोर,
ये रंग बिरंगी तितलियाँ
और टर्र टर्र मेढकों का शोर।

दूर दूर तक लहलहाते पेड़
हवा के साथ झूमते मुस्कुराते,
और झूमती हरी भरी धरती
दूर दूर तलक पौधे लहराते।

आकाश में सूरज से
आँख मिचौली करते मेघ,
और ह्रदय स्पंदित
पंछियों की कतार देख।

काश¡¡¡¡¡

भगवन दे देते ऐसी टेक्नोलॉजी

कि

ये हरी भरी धरती
ये लहलहाते खेत,
ये फूलों की सुगंध
ये काले काले मेघ।

एक बक्शे में भरकर
ले जा पाता ,

ये
थोड़ा सा
पूरा आकाश,

अपने अपंग पिता के पास।

अजय अमिताभ सुमन
उर्फ़
बेनाम कोहराबाज़ारी


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