आह, चाहता मैं क्यों जाये
जग से कभी वसन्त नहीं?
आशा - भरे स्वर्ण - जीवन का
किसी रोज हो अन्त नहीं?
था न कभी, तो फिर क्या चिन्ता
आगे कभी नहीं हूँगा?
यदि पहले था, तो क्या हूँगा
अब से अरे, अनन्त नहीं
जग से कभी वसन्त नहीं?
आशा - भरे स्वर्ण - जीवन का
किसी रोज हो अन्त नहीं?
था न कभी, तो फिर क्या चिन्ता
आगे कभी नहीं हूँगा?
यदि पहले था, तो क्या हूँगा
अब से अरे, अनन्त नहीं
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